________________
८३-- सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणइ सोच्चा, जं सेयं तं समायरे ॥
( दश० अ०४-११) सुन कर ही कल्याण का मार्ग जाना जाता है, सुनकर ही पाप का मार्ग जाना जाता है । दोनों ही मार्ग सुन कर ही जाने जाते हैं। बुद्धिमान साधक का कर्तव्य है कि पहले श्रवणे करे और फिर अपने को जो श्रेय मालूम हो, उसका आचरण करे ।।
- महावीर के सिद्धान्त भगवान महावीर का संक्षिप्त जीवन-परिचय प्रस्तुत पुस्तिका के दूसरे निबन्ध के प्रारम्भ में कराया जा चुका है । प्रस्तुत में तो हम केवल भगवान महावीर के मुख्य-मुख्य सिद्धान्तों का संक्षेप में परिचय कराना चाहते हैं।
कहा जा चुका है कि दीपमाला पर्व के साथ भगवान महावीर का सीधा सम्बन्ध है, और यह भी प्रकट कर दिया गया है कि भगवान महावीर के जीवन के दो पहलू हैं-एक बाह्य और दूसरा आन्तरिक । जीवनगत घटना चक्र भगवान के जीवन का बाह्य पहलू है, और भगवान के आन्तरिक जीवन में उन के उपदेशों तथा सिद्धान्तों का विवेचन है। भगवान के उपदेशों का संक्षिप्त विवरण ऊपर दे दिया गया है। आगे की पंक्तियों में भगवान के सिद्धान्तों का संक्षेप में परिचय कराया जाता है।
..... भगवान महावीर क उपदेशामृत का भाषानुवाद "सस्ता साहित्य मण्डल, देहली” से प्रकाशित "महा-वीर कापी" से साभार. उद्धृत किया गया है ।