Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 66
________________ कितनी अद्भुत बात है कि अपने साढ़े बारह वर्ष के तपस्याकाल में भगवान ने एक बार तो लगातार छह महीना जितना लम्बा काल निराहार और निर्जल रह कर बिता दिया । इस साढ़े बारह वर्ष के दीर्घ-काल में उन्होंने कुल मिलाकर ३४६ दिन भोजन किया और शेष दिनों में उपवास ही रखा । और यह भी कम आश्चर्य जनक नहीं कि उन्होंने एक अपवाद के सिवाय कभी निद्रा भी नहीं ली। जब नींद आने लगती तो वे थोड़ी देर चंक्रमण करके निद्रा भगा देते और सदैव जागृत रहने का ही प्रयत्न करते रहते थे। इससे ज्ञात होता है कि अभ्यास द्वारा मनष्य निद्रा पर विजय प्राप्त कर सकता है। सिद्धि सर्वोत्कृष्ट साधना के फलस्वरूप भगवान् महावीर को सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक सम्पत्ति की उपलब्धि हुई। उन्हें सर्वज्ञ और सर्वदर्शी पद प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् भगवान् ने तत्त्व के स्वरूप तथा मोक्षमार्ग का प्रतिपादन किया। तीस वर्ष तक स्थान-स्थान पर परिभ्रमण करके अन्त में पावापुरी पधारे। मोक्ष की घड़ी निकट थी, किन्तु वे विश्व को अपनी पुण्यमयी, कल्याणकारिणी और परमपावनी वाग्धारा से प्राप्लावित कर रहे थे। आखिर कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में वे समस्त कर्मों से विनिर्मुक्त, अशरीर-सिद्ध हो गये। जीवन महिमा-- । भगवान् महावीर विश्व के अद्वितीय क्रान्तिकारी महापुरुष थे । उनकी क्रान्ति किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी। उन्होंने सर्वतोमुखी क्रान्ति का मन्त्र फंका था। अध्यात्म, दर्शन, समाज, व्यवस्था, यहाँ तक कि भाषा के क्षेत्र में भी उनकी देन

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