Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ होते हैं वे रात्रि में देखे नहीं जा सकते। तो रात्रि में भोजन कैसे किया जा सकता है ? . ३०- मूलाओ खंधप्पभवो दुमस्स, खंधाउ पच्छा समुविन्ति साहा । साह-प्पसोहा विरुहन्ति पञ्चा, तत्रो से पुष्पं फलं रसोय ॥१॥ __(दश० अ०६ उ० २-१) वृक्ष के मूल से सब से पहले स्कन्ध पैदा होता है, स्कन्ध के बाद शाखाएँ निकलती हैं। छोटी शाखाबों से दूसरी छोटी-छोटी शाखाएँ निकलती हैं। छोटी शाखाओं से पत्ते पैदा होते हैं। इसके बाद क्रमशः फूल, फल और रस उत्पन्न होते हैं । ३१- एवं धम्मस्स विणो, मूलं परमो से मुक्खो । जेण किचिं सुयं सिग्धं, निस्सेसं चाभिगच्छइ ॥२॥ ( दश० अ०६ २०२-२) इसी भाँति धर्म का मूल विनय है और मोक्ष उसका अन्तिम रस है । विनय के द्वारा ही मनुष्य बड़ी जल्दी शास्त्रज्ञान तथा कोर्ति संपादन करता है । अन्त में, निश्रेयस (मोक्ष) भी इसी के द्वारा प्राप्त होता है । ३२-- अह पंचहि ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भइ । थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणाऽऽलस्सएण य ॥३॥ (उत्तरा० अ० ११-३) आगे कहे जाने वाले पाँच कारणों से मनुष्य सच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102