Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ ५२ वह वहां विविध प्रकार की आधि-व्याधियों से पीड़ित होकर अत्यन्त दुःखी होता है । ५- अद्धा जो महन्तं तु सपाहेश्रो पचज्जइ । गच्छन्तो सो सुही होइ, छुहा - तरहा विवज्जिो ॥ ( उत्तरा० अ० १६-२० ) जो पथिक लम्बे मार्ग की यात्रा पर अपने साथ पाथेय लेकर जाता है, वह आगे जाता हुआ भूख और प्यास से तनिक भी पीड़ित न होकर अत्यन्त सुखी होता है । ६ - एवं धम्मं पि काऊ, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ. अप्पकम्मे अवेयणे ॥ ( उत्तरा० अ० १६-२१ ) और जो मनुष्य यहां भली भाँति धर्म का आराधन कर के परलोक जाता है, वह वहां अल्पकर्मी तथा पीड़ा रहित होकर अत्यन्त सुखी होता है । ७- जहा सागडियो जाणं, समं हिच्चा महापहं । विसमं मग्गमोइण्णो, अवखे भग्गम्मि सोयइ ॥ ( उत्तरा० ० ५-१४ ) जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर भी साफ़-सुथरे राजमार्ग को छोड़कर विषम (ऊंचे-नीचे, ऊबड़-खाबड़ ) मार्ग पर जाता है, वह गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है । ८ एवं धम्मं विउक्कम्म, अहम्मं पडिवांज्जया । बाले मच्चुमुहं पत्त े, क्खे भग्गेव सोयइ ॥ ( उत्त० अ० ५-१५ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102