Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 63
________________ ४६ सजा रही थी, प्रकृति प्रसन्न थी और जन-जन के मानस में अपूर्व उल्लास और अाहलाद उत्पन्न कर रही थी, तब चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर ने अपने जन्म से इस पृथ्वी को पावन किया । उनका नाम वर्धमान रखा गया। बाल्य काल उन के बाल्यकाल की अनेकानेक घटनाएँ जैन ग्रन्थों में उल्लिखित हैं, जिन से प्रतीत होता है कि वर्द्धमान होनहार विरवान के होत चीकने पात' की उक्ति के अनुसार बचपन से ही अतीव बुद्धिमान, विशिष्ट ज्ञानवान् , धीर, वीर और साहसी थे। उनके माता-पिता भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी थे अतएव अहिंसा, दया, करुणा और संयमशीलता के वातावरण में उन का लालन-पालन हुआ। ___ वर्धमान में एक बड़ी जन्मजात विशेषता थी अलिप्तताअनासक्ति की। राज-प्रासाद में रहते हुए भी और उत्कृष्ट भोगसामग्री की प्रचुरता होने पर भी वे समस्त भोग पदार्थों में अनासक्त रहते थे। उनकी अन्तरात्मा में एक असाधारण प्रकाश था, एक दिव्य ज्योति थी, जो उन के मानस एक निराले ही पथ का प्रदर्शन करती रहती थी । वर्धमान स्वभाव से ही अत्यन्त गम्भीर और सात्त्विक थे । उनकी देह अनुपम स्वर्णगौर अतिशय प्राणवान थी । उनका आनन ओजस्वी, ललाट तेजस्वी और वक्षस्थल चेतोहर तथा विशाल था । सात हाथ ऊचा उनका सम्पूर्ण शरीर असाधारण सौन्दय की पुरुषाकार प्रतिमा के समान था, फिर भी उनका मानस वैराग्य के रंग में रंगा हुआ था । वह कभी-कभी अतिशय गम्भीर प्रतीत होते, मानों संसार के दुःखदावानल से

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