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वीर - निर्वाण महापर्व
मावस्या की रात्रि 'दीपमाला' और 'वीर - निर्वाणमहापर्व' इन दो नामों से प्रख्यात है । दीपमाला के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है । प्रस्तुत में वीर निर्वाण महापर्व को लेकर कुछ बातें आपके सामने रखी जाएगी । कार्तिक अमावस्या की पुण्य रात्रि में भगवान् महावीर का निर्वाण प्राप्त हुआ । वे निराकार, निर्विकार और निरंजन दशा को प्राप्त हुए । मध्यलोक से अनन्त ज्योति का पुरंज तिरोहित हो गया । उनका लोकोत्तर आत्म-तेज उन्हीं के साथ चला गया । उसके चले जाने पर हस्तिपाल राजा की पौषधशाला * ही निबिड़ अन्धकार से आच्छादित नहीं हुई प्रत्युत पौषधशाला में उपस्थित सहस्रों मानवों और अठारह देशों के राजाओं के हृदयों में भी अंधकार की शून्यता व्याप गई ।
'डूबते को तिनके का सहारा' इस लोकोक्ति को चरितार्थ . करते हुए उन्होंने रत्नों का प्रकाश करके सर्वत्र प्रसूत तिमिर के प्रतीकार का प्रयत्न किया । धीरे-धीरे उस प्रयत्न का अनुकरण समग्र देश में किया गया और कार्तिकी अमावस्या के दिन सारे देश में दीपावली जगमगाने लगी । दीपकों का प्रकाश करके भगवान् महावीर का पुण्य निर्वाण दिवस सर्वत्र मनाया जाने
* भगवान महावीर का अन्तिम चातुर्मास पावापुरी महाराज हस्तिपाल की पौषत्रशाला में हुआ था, आदि बातों का उल्लेख प्रस्तुत पुस्तिका के पहले निबन्ध के आरम्भ में किया जा चुका है ।
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