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भामण्डल की प्रेरणा का परिणाम
जिसने भावप्रकाश को प्राप्त करने की प्रेरणा प्राप्त कर ली है, वह उसके कारण-भूत अहिंसा, सत्य आदि पुनीत सिद्धान्तों को अपने जीवन-व्यवहार में व्यवहृत करने का प्रयत्न करता है, वह सत्य को भगवान् समझ कर मनसा, वाचा और कर्मणा उसी की आराधना करता है । जीवन के प्रत्येक व्यवहार को सत्य की ही कसौटी पर कसता है और सत्य के आलोक में ही अपनी जीवन-गाड़ी चलाने का प्रयत्न करता है। अहिंसा उस की रगरग में व्याप्त हो जाती है । उसके द्वारा किसी को बाधा नहीं हो सकती, पीड़ा नहीं पहुँच सकती । वह स्वयं किसी को सताता नहीं, प्रत्युत दूसरों द्वारा सताए हुए का संरक्षण करता है । ईर्षाद्वेष. वैर-विरोध आदि विकारों से विरत हो जाता है । उसका प्रत्येक पग व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र में शान्ति की स्थापना के लिए आगे बढ़ता है । वह भूल कर भी कोई काम ऐसा नहीं करता जिससे वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रिय हित की क्षति होती हो या उसका अपयश हो । उसकी प्रत्येक प्रवृत्ति इसी ध्येय से होती है कि मानव मानवता को अपनाएँ, परिवार फले-फूलें, समाज दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करे और राष्ट्र समृद्धिशाली, सशक्त और तेजस्वी बने, उसमें प्राचार और विचार को पवित्रता का प्रादुर्भाव हो तथा सर्वत्र प्रामाणिकता की प्रतिष्ठा हो।
भावप्रकाश प्राप्त करने का इच्छक व्यक्ति जानता है कि उसे प्राप्त कर लेना काई बच्चों का खेल नहीं । उसे पाने के लिए प्राणों की बाजी लगानी पड़ती है । मन की. उच्छखलता और उद्दण्डता समाप्त करनी होती है। वाणी में अमृत की