Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 57
________________ मधुरता घोलनी पड़ती है। हाथों-पैरों तथा शरीर के अन्यान्य अवयवों का सतर्कता के साथ सदुपयोग करना होता है। पर का अनिष्ट करने वाला और किसी को व्यथित तथा पीड़ित करने वाला व्यक्ति उस भाव-प्रकाश को प्राप्त नहीं कर सकता । - भाव-प्रकाश के कारणभूत अहिंसा, सत्य आदि सिद्धांतों को जिसने अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया है, वह वस्तुतः महान् बन जाता है। जनसमाज में वह सर्वत्र आहत और सम्मानित होता है तथा जगत् उसके मार्ग में पलकें बिछा देता है । जहां वह बैठता है, शांति की वर्षा होने लगती है। वर-विरोध और ईर्षा-द्वेष का दावानल शान्त हो जाता है । संसार का घोर नास्तिक भी उसके चरण चूमने को लालायित . . हो उठता है। वह जहाँ पहुँच जाता है, लोग वाह-वाह की ध्वनि से उसका अभिनन्दन करते हैं और उसके दर्शन करके अपने सौभाग्य की सराहना करते हैं । उस पुरुष के जीवन में भगवान् राम की मर्यादा, त्रिखण्डाधिपति कृष्ण के अनासक्ति योग और भगवान् महावीर के अहिंसावाद की पावनतम त्रिवेणी का संगम दृष्टिगोचर होता है। वह परिवार का भूषण, समाज का शृगार और राष्ट्र का अनमोल वैभव समझा जाता है। पर्व की राष्ट्रियता आज सारे संसार में एक बड़ी भ्रमपूर्ण धारणा फैल रही है, उस धारणा के अनुसार व्यक्ति नगण्य है, उपेक्षणीय है और एक मात्र समाज को ही सम्पूर्ण महत्त्व प्राप्त है । इसी धारणा के. कारण लोग व्यक्ति (आत्मा) को भूल रहे हैं और समष्टि को ही सब कुछ समझ रहे हैं । परिणाम यह हो गया है

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