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उसे भुला दिया गया है । मिठाइयों की टोकरियां देखकर दीपमाला की आवाज को अनसुना कर दिया गया है । पटाखों के भीषण नाद दीपमाला के सत्य सन्देशों को कानों तक आने नहीं देते । मकानों की, वस्त्रों की तथा आभूषणों की चकाचौंध में दीपमाला की आत्मा के दर्शन नहीं किये जाते ।
दीपमाला की वास्तविकता---
आप मिठाई खा रहे हैं, पास में एक निर्धन बालक आप की ओर ललचाई आंखों से देख रहा है,अपमान का विष पीकर भी आप की ओर हाथ पसारता है, गिड़गिड़ाता है, आंखों में आंसू भर लाता है, फिर भी यदि आप उसे झिड़क देते हैं, उस असहाय बालक के अरमानों को आग लगा देते हैं, तो विश्वास रखिये दीपमाला आप पर कभी प्रसन्न नहीं होगी, दीपमाला की जगदम्बा आप से रूठ जाएगी। आप जब उसके आगे हाथ पसारेंगे तो वह आपको भी झिड़क देगी, आपकी झोली में कुछ न डालेगी। दीपमाला के दरबार से आपको भी खाली ही लौटना पड़ेगा। दीपमाला को प्रसन्न करने क कामना करने वालो ! यदि दीपमाला को प्रसन्न करना चाहते हो, उसे मनाना चाहते हो तो ग़रीबों के बच्चों को भूखे मत मरने दो, विधवाओं के कलेजे के टुकड़ों को सड़कों पर मत सड़ने दो। अपनी खुशी में उन्हें भी सम्मिलित करने का यत्न करो । इन स्व-पर कल्याणकारी कार्यों से बढ़ कर दीपमाला को मनाने का कोई अन्य मार्ग नहीं है ।
अब अन्धकार का युग लद गया है। इस उन्नत युग में हमें सम्भलना चाहिये और पर्यों के मूल हार्द को समझकर उस में निहित आलोक से अपने जीवनाकाश को आलोकित करना चाहिए : तभी यह महान पुनीत दीपमाला पर्व हमारे