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दीपमाला और जैन-धर्म जैनत्व की दृष्टि से दीपमाला एक लोकोत्तर पर्व है। जैन-दर्शन की मान्यता के अनुसार सांसारिक आमोद-प्रमोद के साथ इस पर्व का कोई सम्बन्ध नहीं है। महापर्व संवत्सरी की भाँ त यह पर्व भी मानव को प्रति--वर्ष आध्यात्मिकता तथा सच्चरित्रता का पावन एवं मधुर संदेश देने आता है । अज्ञानान्धकार से निकाल कर आध्यात्मिक आलोक से मानव के आत्ममन्दिर को आलोकित कर देना ही इसका अपना स्वरूप होता है । काम, क्रोध, मद, मोह, माया आदि का कूड़ा-करकट जो आत्म-भवन में बिखरा पड़ा है, दीपमालापर्व उस का मृदुता, सरलता आदि के झाड़ से परिमार्जन करता है। मानव--हृदय में जल रहे सत्यअहिंसा के श्रादर्श दीपकों को सतत सजग रखने की मधुर प्रेरणा देकर मानव को मानवता का अनुपम पाठ पढ़ाता है ।
दीपमाला क्यों--
जैनजगत में दीपमाला एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व माना गया है । जैन लोग बड़ी श्रद्धा तथा आस्था के साथ इस पर्व को मनाते हैं । इम के उपलक्ष्य में धर्म-प्रेमी लोग अधिकाधिक धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जप करते हैं, शास्त्र--स्वाध्याय करते हुये ज्ञान-ध्यान द्वारा अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न हो सकता है कि जैन समाज में दीपमाला के सम्बन्ध में इतना आदर क्यों पाया जाता है ? क्या कारण है कि दीपमाला को एक पवित्र और आध्यात्मिक पर्व समझा गया