Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 24
________________ भी नहीं चाहते थे । प्रेम धीरे-धीरे मोह का स्थान प्राप्त कर चुका था । यही कारण था कि श्री गौतम प्रभु का पिता के तुल्य समझते थे । पुत्र का पिता से जैसे स्वाभाविक स्नेह होता है, वैसी ही दशा श्री गौतम स्वामी की भगवान महावीर के प्रति चल रही थी । यह आपको ऊपर बताया जा चुका है कि कार्तिकी अमावस्या की रात्रि को भगवान महावीर का निर्वाण हो गया, इस रात्रि को भगवान जन्म-मरण के बन्धनों को तोड़ कर मुक्ति में पधार गये थे । * जब प्रभु महावीर का निर्वाण हुआ था, उस समय भगवान गौतम भी उनके पास बैठे उनके पावन मुख से निकले “समयं गोयम ! मा पमायए" जैसे पावन और मधुर वचनों का श्रवण कर रहे थे । जब श्री गौतम ने ज्ञान की प्रकाशदात्री महाज्योति प्रभु वीर को अपने से विलग होते देखा तो वे सन्न से रह गए, ज़मीन उनके पांव तले से खिसक गई, उनकी अन्तरात्मा में भूचाल सा आ गया, तथा आंखों के आगे अन्धेरा छा * कल्पसूत्र की टीका का कहना कि भगवान महावीर ने अपने जीवन के संध्याकाल में अपने प्रधान शिष्य श्री गौतम स्वामी को एक ग्राम में देवशर्मा नामक ब्राह्मण के पास भेजा था, ब्राह्मण को सत्य-अहिंसा का सत्य समझाने के लिये मुनिवर गौतम को आदेश दिया गया था। भगवान के आदेशानुसार श्री गातम उस ब्राह्मण को अध्यात्मवाद का पाठ पढ़ाकर वापिस आ रहे थे या वहीं थे तो उन्होंने अकस्मात् भगवान महावीर के निर्वाण को प्राप्त हो जाने की बात सुना । निर्वाणवृत्तांत सुनते ही मुनिराज गौतम अत्यधिक व्यथित एवं पीड़ित हुए आदि आदि ।

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