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. २६ करते हों, जिसकी युवतियां पेट भरने के लिए अपना सतीत्व बेच सकती हों, देश के नवनिर्माण की योजनाएं जहां पड़ौसी देशों की कृपा पर निर्भर हों, इस तरह जहां दरिद्रता का ताण्डव नृत्य हो रहा हो, उस देश के वासी भी यदि आतिशवाजी जलाने के लिए करोड़ों रुपयों का सत्यानाश करते हैं, अपने मनोविनोद के लिए करोड़ों रुपयों को जला कर खाक बना डालते हैं, तो इससे बढ़ कर मानवता के लिये कलंक की और क्या बात हो सकती है ? देश, जाति और परिवारों के विनाश के यही ढंग हुआ करते हैं । समझदार और सुशील मानव को इस पापकारी और अनर्थकारी प्रवृत्ति का परित्याग कर देना चाहिए ।
आतिशवाजी से धन का नाश तो होता ही है किन्तु कई बार यह मानवजीवन को भी जलाकर खाक बना डालती है। लुधियाना शहर की बात है। एक दुकान में आतिशवाजी का सामान पड़ा था । अचानक उस में आग लग गई। आग की ज्वालाएँ भयंकर रूप धारण करने लगीं। पनसारी की दुकान . थी। इसलिए बादाम और छुहारों आदि की बोरियों को पाकर आग और भी अधिक भड़क उठी। धीरे-धीरे आग ने सारी दुकान को अपनी लपेट में ले लिया। कहा जाता है कि ३० हज़ार का सामान जल कर खाक हो गया। उस दुकान में लगभग तीन वर्ष का एक बच्चा भी सो रहा था । उसे भी आग ने बुरी तरह झुलस दिया। कितना बीभत्स और लोमहर्षक था वह दृश्य ? वज से वज़ हृदय भी उस बच्चे के शव को देखकर काँप उठता था । बच्चे को मां-बाप के तो आंसू ही नहीं रुकते थे । जनमानस उस समय चीख उठा था । यह सब दुष्परिणाम किस का था ? इसी घृणित आतिशवाजी का ।