Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 47
________________ ३० आप सदा समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं और प्रतिदिन सुनते हैं कि आतिशवाजी जलाने से इतने मकान जल गए, इतने पशु जल मरे, और इतने बच्चे जल कर खाक हो गए । एक नहीं अनेकों ऐसी घटनाएँ प्रायः प्रतिदिन सुनने को मिलती है, जो मानव हृदयों को कम्पित कर देती हैं। आतिशवाजी जलाना पाप है, हिंसाजनक प्रवृत्ति है, इस के दुष्परिणामों का कहां तक वर्णन करता चला जाऊं ? आतिशवाजी के भयंकर शब्दों से मनुष्य तो बौखला ही उठता है, परन्तु पशु पक्षियों की भी बहुत दुर्दशा होती है । बेचारे पक्षी जो अपने-अपने स्थानों में आराम तथा शान्ति के साथ बैठे होते हैं, आतिशवाजी की आवाज़ों से भयभीत हो कर उड़ते हैं, रात्रि को कुछ न दीखने के कारण न जाने कहां-कहां धक्के खाते हैं और बुरी तरह मर जाते हैं । यह सब अनर्थ और पाप आतिशवाजी के ही कारण होता है । अतः आतिशवाजी से सदा दूर रहना चाहिए | आतिशवाजी दीपमाला की महत्ता के लिए अभिशाप है, कलंक है । इस से जंगम और स्थावर सभी प्रकार की सम्पत्ति का नाश होता है । अत: भूलकर भी इस को हाथ नहीं लगाना चाहिये । आजकल की दीपमाला आजकल की दीपमाला और प्राचीन युग की दीपमाला की तुलना की जाये तो यह मानना पड़ेगा कि आज की दीपमाला अपने मूलरूप को खो बैठी है। आध्यात्मिक दृष्टि से उस में अनेकानेक विकार आ गये हैं । आज मंगलमूर्ति भगवान महावीर के अनन्त ज्ञान दर्शन के प्रतीक भाव- उद्योत का हमें जरा भी ध्यान नहीं आता है । आत्मशान्ति तथा आत्मकल्याण के लिये

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