Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ प्रस्तुत निबन्ध के आरम्भ में भली भाँति कराया जा चुका है। दीपमाला वस्तुतः एक महान और एक पवित्र पर्व है । इस की पवित्रता में किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता। यह पर्व सामान्य पर्व नहीं है, इस की असाधारणता सर्वविदित है । यह पर्व भगवान महावीर के आध्यात्मिक प्रकाश--पुज का तथा भगवान गौतम के केवल-ज्ञान की महाज्योति का एक मंगलमय प्रतीक है । ऐसे पवित्र और आध्यात्मिक पर्व को भी आतिशवाजी जलाने जैसी कुत्सित और घृणित प्रवृत्ति में परिवर्तित कर देना कितने दुःख और शोक की बात है ! जो पर्व मानव को उसके अन्तर्जगत को सत्य अहिंसा की महाज्योति से ज्योतित कर लेने की पवित्र प्रेरणा प्रदान करता हो, उसे आतिशवाजी जलाने, पटाखे चलाने आदि में ही समाप्त कर देना, मानव-जीवन की कितनी बड़ी विडम्बना है ? जो पर्व व्यष्टि और समष्टि के लिए वरदान बनकर आया हो, वह भी यदि मनुष्यता के लिये अभिशाप बन जाए तो मानव जीवन के लिए इससे बढ़ कर लज्जा की और क्या बात हो सकती है ? सबसे बढ़ कर आश्चर्य की बात तो यह है कि मनुष्य भली भाँति जानता है कि आतिशवाजी जैसी दूषित प्रवृत्ति का इस पवित्र पर्व दीपमाला के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, और वह यह भी खूब समझता है कि इस दुष्प्रवृत्ति से धन का नाश होता है, मानव-जीवन और पशु जीवन की हानि होती है, तथापि वह इस आतिशवाजी का पिण्ड नहीं छोड़ता; प्रत्युत दिन प्रतिदिन उसके निर्माण में, उसके विकास तथा प्रचार में अधिकाधिक रस लेता जा रहा है, ज़रा भी उसमें संकोच नहीं करता । बड़े उत्साह तथा हर्ष के साथ उस का सम्वर्द्धन करता

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102