Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 23
________________ सत्य-अहिंसा का परम सत्य जनमानस तक पहुँचाया जाता है। भगवान महावीर के साथ दीपमाला का सीधा सम्बन्ध होने से यह पर्व वीरनिर्वाण महापर्व के नाम से भी प्रसिद्ध हो गया है। भगवान गौतम और दीपमाला जैनों के लिये दीपमाला के महत्त्व तथा सम्मान की एक और भी बात है। इतिहास बताता है कि भगवान महावीर के चौदह हज़ार साधु थे । इन साधुओं में प्रमुख स्थान महामहिम तपोमूर्ति पूज्य श्री इन्दभूति गौतम जी महाराज का था । श्री इन्द्रभूति जी महाराज भगवान के ११ गणधरों में से पहले गणधर थे और आज ये जैन संसार में श्री गौतम स्वामी के नाम से विख्यात हैं। श्री गौतम जी महाराज भगवान महावीर के अनन्य श्रद्धालु तथा उपासक मुनिराज थे। इन्हें प्रभु के चरणों से महान प्रेम था। श्री गौतम स्वामी का यह प्रेम इतना विलक्षण था कि कुछ कहते नहीं बनता। प्रभु का वियोग उन्हें सर्वथा असह्य था । प्रभु के वियोग की बात वे सुनना पास राजा-महाराजा उपस्थित नहीं थे। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि यदि २३ तीर्थंकरों में से किसी तीर्थंकर भगवान के निर्वाण के समय राजा-महाराजा उपस्थित भी हों तो उनके मस्तिष्क में यह विचार ही पैदा नहीं हुआ होगा कि हम इस तीर्थकर के निर्वाण-दिवस के उपलक्ष्य में भविष्य में दीपोत्सव किया करेंगे। भगवान महावीर के निर्वाण-समय में उपस्थित राजालोगों ने जैसे द्रव्य-उद्योत की बात सोची थी वैसे उन्होंने नहीं सोची होगी । फलतः फिर अन्य तीर्थंकरों के निर्वाण--दिवस को लेकर दीपमाला मनाने का प्रश्न ही नहीं रहता ।

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