Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 36
________________ भीषणे यातनाओं तथा वेदनाओं का उपभोग करना पड़ता है। जूआरी के जीवन की जो बाह्य दुर्दशा होती है, निरन्तर जो उसे अपमान तथा अनादर के विष-प्याले पीने पड़ते हैं, उनका संक्षेप में ऊपर की पंक्तियों में विवेचन किया गया है । इस विवेचन से यह भलीभाँति प्रमाणित हो जाता है कि जूआरी इसी जीवन में गधा बन जाता है, इसी जीवन में गधे की अवस्था को पा लेता है, और गधे से भी अधिक भर्त्सना तथा अवहेलना का पात्र बनता है, फिर परलोक में जूआरी की जो दुरवस्था होती है उसे केवल ज्ञानी के अतिरिक्त कौन बता सकता है ? अतः भूल कर भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि दीपमाला की रात्रि को जूा न खेलने वाला गधा बनता है। प्रत्युत यही समझना चाहिए कि जूआ खेलने वाला ही गधा बनता है, गधे की तरह घृणा का पात्र होता है । जूए के दुष्परिणाम जूआ खेलना एक आध्यात्मिक दूषण माना गया है, इस से आत्मगुणों का ह्रास होता है, मानव जीवन का यह सर्वतोमुखी पतन कर डालता है । जिस किसी ने जूए को अपना साथी बनाया है, इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है मानों उसने अपने जीवन को दुःख-सागर में धकेल दिया है, जीवन की बाह्य तथा अन्तरंग शान्ति को कान से पकड़ कर बाहिर निकाल दिया है और दुःखों को निमन्त्रण दे डाला है। इतिहास इस तथ्य का गवाह है । इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण उपलब्ध होते हैं जो इस सत्य का पूर्णतया पोषण एवं समर्थन करते हैं । भारतनरेश पाण्डु के पुत्र पाण्डवों को कौन नहीं जानता ? भारत का बच्चा-बच्चा पाण्डवों की जीवन-गाथाओं

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