Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 38
________________ २१ स्त्रीगमन करना, ये सात कुत्र्यसन हैं- जीवन के महान दूषण हैं । ये कुव्यसन मानव जीवन को 'घोरातिघोर ( अत्यधिक भीषण) नरक में ले जाते हैं । इन कुत्र्यसनों के प्रताप से मानव नरक की लोम-हर्षक भयंकर वेदनाओं का उपभोग करता है । ऊपर के सात कुव्यसनों में जूए का प्रथम स्थान है, या यूं कहें कि जीवन की अवनति का आरम्भ जूए से होता है । आ खेलने का अर्थ है - जीवन के विनाश का प्रथम पग उठाना । जैन शास्त्रों की मान्यता के अनुसार जीवन का पतन जूए से चालू होता है । अतः इस कुव्यसन से सदा दूर रहने का यत्न करना चाहिये । जेनेतर दर्शन में जूया - जूए के सम्बन्ध में जैनदर्शन का जो विश्वास है, वह ऊपर की पंक्तियों में आपको बतलाया जा चुका है। जैन दर्शन के अतिरिक्त जैनेतर दर्शन जूए के सम्बन्ध में जो अभिमत रखता है, उसे भी समझ लीजिए। वैदिक दर्शन के प्रामाणिक धर्मशास्त्र मनुस्मृति में लिखा है द्यतं समाह्वयं चैत्र, राजा G राष्ट्रान्निवारयेत् । राज्यान्ताकरणावेतौ द्वो दोषौ पृथिवीक्षिताम् || (मनुस्मृति अ० ६- २२१ ) - अर्थात् सुखाभिलाषी राजा को द्यूत जुआ और समाह्वय (पशु और पक्षी आदि को लड़ाकर हार-जीत करना) को अपने राज्य से बाहिर निकाल देना चाहिये । द्यूत और समाह्वय को राज्य से बाहर निकालने का कारण यही है कि ये दोनों दोष राजाओं के राज्य का नाश करने वाले होते हैं ।

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