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है । पशु बनने के चार कारण होते हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार चार कारणों से जीव पशु योनि को प्राप्त करता है। उन कारणों को भी समझ लीजिए । वे निम्नोक्त हैं
१-माया-छल प्रपंच और कुटिल भावों का नाम माया है । मन में कुछ और हो तथा वाणी में कुछ और ही हो, यह अवस्था जीवन में बनाए रखना । "मुंह में राम-राम, और बग़ल छुरी" की तरह ऊपर से मीठा व्यवहार करना और दिल में अनिष्ट चाहना।
२- माया में माया-छल में छल करना । एक छल को छिपाने के लिये दूसरा छल करना, प्रतिक्षण जीवन में कपट रचना करते रहना, छल को ही अपना आराध्य बना लेना ।
३- झूठ बोलना- झूठी बातों में अधिक रस लेना। बात-बात में मृषावाद का आश्रय लेना। सत्य को जीवन ले निकाल देना । झूठ के द्वारा ही जीवन का निर्वाह करना । भूठी गवाहियां देना, भूठे दस्तावेज लिखना, भूठे हस्ताक्षर करना, झूठे लेख लिखना। किसी की धरोहर को हज्रम कर, जाना आदि ।
४- भूठे तोल माप रखना-तोलने के बटे बेचने के और तथा खरीदने के और रखना। इसी प्रकार कपड़ा, तेल, भूमि श्रादि पदार्थों को मापने के साधनों के प्रयोग में प्रामाणिकता से काम न लेना।
मनुस्मति में पशुगति की कारणसामग्री----
मनुस्मृति के बारहवें अध्याय में पशु-योनि को प्राप्त करने के चार कारण लिखे हैं। उन्हें भी समझ लीजिए ।