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का आरम्भ भगवान राम से हुआ है। जब मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान राम वनवास-काल समाप्त करके वापिस आये थे तो अयोध्या-निवासियों ने रात्रि को दीपमाला की थी, घरघर दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था। वही दीपमाला अविच्छिन्न गति से आज भी चली आ रही है , किन्तु उपरोक्त मान्यता सत्यता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती । आप ही विचार करें कि जब आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से रामलीला प्रारम्भ करके आश्विन शुक्ला दशमी को विजयदशमी (दशहरा) मनाई जाती है और एकादशी को भरतमिलाप (राम भरत का संगम) कर दिया जाता है । (भरत-मिलाप का अर्थ है कि भगवान राम का वनवास-काल समाप्त करके वापिस अपनी राजधानी में चले आना), तब आश्विन शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक अमावस्या तक के १६ दिनों के अनन्तर अयोध्या-निवासियों का दीपमाला महोत्सव करने का क्या प्रयोजन ? भगवान राम का अयोध्या-प्रवेश तो आश्विन शुक्ला एकादशी को हो गया हो और उसका हर्ष कार्तिक अमावस्या की रात्रि को दीपमाला के रूप में मनाया गया हो, इस असंगत व्यवधान काई समाधान नहीं है । इसके अतिरिक्त बाल्मीकि रामायण तथा तुलसी रामायण आदि में भी "कार्तिकी अमावस्या की रात्रि को रामागमन के उपलक्ष्य में अयोध्या--निवासियों द्वारा दीपमाला की गई हो" ऐसा कोई उल्लेख देखने में नहीं
आया । तब यह कैसे माना जा सकता है कि दीपमाला का मूल भगवान राम का अयोध्याप्रवेश है ? मानना पड़ेगा क भगवान राम का कार्तिकी दीपावली के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। हां, यदि कोई विद्वान् दीपमाला को भगवान राम के अयोध्याप्रवेश