________________
इन ऐतिहासिक महापुरुषों के अतिरिक्त और भी कई एक महापुरुषों का और सन्तों का इस दीपमाला से सम्बन्ध हो सकता है, किन्तु इस सम्बन्ध में हमारी जानकारी में जो कुछ था, वह आपके सामने प्रस्तुत कर दिया गया है । भविष्य में न जाने
और कौन-कौन महापुरुष इस दीपमाला के साथ अपना-अपना पुण्य सम्बन्ध जोड़ कर इसके चरणों में अपनी-अपनी श्रद्धाञ्जलियाँ अर्पित करेगा, और दीपमाला की इस लोकप्रियता को और अधिक व्यापक बनाने में अपना पुण्य योग देगा। जूआ और दीपमाला
आप विस्मित होंगे कि आज भी लोगों में कितना भीषण अन्धविश्वास बैठा हुआ है । स० १६५० में हमारा चातुर्मास फग़वाड़ा मंडी में था । वहां एक सज्जन से दीपमाला के सम्बन्ध में विचार-विनिमय करने का अवसर मिला था। उस ने कहा था कि जो व्यक्ति दीपमाला की रात्रि को जूआ नहीं खेलता वह मर कर गधा बनता है । सुनते ही मुझे हंसी आ गई । मैंने कहाजूआ खेलने वाले को इस जन्म में गधा बनते तो हमने देखा है। परलोक में उसकी क्या दुर्दशा होती है ? उसे भगवान जाने । ___आज के मानव में इतना अंध-विश्वास घर कर गया है कि आज वह दिन-प्रतिदिन लकीर का फकीर बनता जा रहा है। वह अपना लाभ-हानि भी सोचने का कष्ट नहीं करता। पर्व के वास्तविक रूप को उसने भुला दिया है । जए जैसे नीच कुव्यसन को भी आज वह पर्व की आराधना समझ बैठा है । मेरा विश्वास है कि यदि ऐसे अन्धविश्वासों की छाया तले मानव पवों के महासागर में लाखों बार भी डुबकियां लगा ले तब भी वह वहां से सूखा ही निकलेगा. उसे आत्म--शुद्धि का एक