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प्रत्युत अन्य जितने भी लोग वहां बन्दी कर लिये गए थे उन सबको भी मुक्त करा दिया । ग्वालियर में विजय प्राप्त करके जिस दिन गुरु हरगोविदसिंह जी अमृतसर वापिस आये थे, उस दिन दीपमाला का ही पुण्य दिवस था। अपने गुरु की विजय-यात्रा की सफलता के उपलक्ष्य में उस दिन से यह पर्व (त्यौहार) सिक्ख लोग भी बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन अमृतसर के स्वर्ण-मन्दिर की सजावट देखने योग्य होती है।
स्वामी दयानन्द और दीपमाला
आर्य समाज आन्दोलन के जन्मदाता स्वामी दयानन्द जी सरस्वती ने इस दीपमाला के पुण्य दिन इस पार्थिव शरीर से किनारा किया था ! ५६ वर्षों की आयु में एक हत्यारे के द्वारा विष पिलाए जाने पर इसी पवित्र दिवस में सायंकाल के समय स्वामी जी ने इस भौतिक शरीर से छुटकारा पाया था । यही कारण है कि हमारे आर्य समाजी भाई अपने स्वर्गवासी नेता की पुण्य स्मृति में अपने ढंग से बड़े समारोह के साथ दीपमाला का पर्व मनाते हैं।
स्वामी रामतीर्थ और दीपमाला
वेदान्त दर्शन की साकार मूर्ति, आध्यात्मिक मस्ती के अवतार, परमहंस स्वामी रामतीर्थ इसी दीपमाला के पुण्य दिन गंगा की नीली लहरों में समाए थे । इतिहास बताता है कि १७ अक्टूबर १६०६ को यही दीपमाला का दिन था । लोग अपने-अपने घरों को सजा रहे थे । दीपक जलाने की तैयारी कर रहे थे , इधर स्वामी रामतीर्थ पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति का सौन्दये निहारने में मस्त थे । उस समय पर्वत पर वर्फीली हवा