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. १२ कीजिये । भगवान राम के कथनानुसार कम से कम
आश्विन मास के दो चार दिन तो अवश्य व्यतीत हुए ही हैं। इन दिनों को २५ दिनों में से निकाल दीजिये तो अवशिष्ट २० या २१ दिन रह जाते हैं। इतने अल्प दिनों में हनुमान का लंका भेजना, हनुमान का लंका में जाकर सीता का पता लगाना, लंका पर आक्रमणार्थ इधर--उधर से सेनाओं का एकत्रित करना, सेना के लिये भोजनादि सामग्री की व्यवस्था करना. लंका में जाने के लिये समुद्र पर पुल का बांधना, लंका में अंगद का दूत बनकर जाना, इन्द्रजीत और कुभकर्ण जैसे बली और रावण जैसे पराक्रमी योद्धाओं द्वारा भीषण युद्ध लड़ा जाना आदि बातें कैसे सम्पन्न हो सकती हैं ? कुछ समझ में नहीं आता। आज के विज्ञान-युग में भी ऐसे भीषण युद्ध, पुल आदि के निर्माण में काफी समय लग जाता है, तो उस युग में ये बातें इतने थोड़े काल में कैसे सम्पन्न हो गई ? समझ से बाहिर की बात है। जब आश्विन शुक्ला दशमी के दिन विजयदशमी का होना भी सन्दिग्ध है तो दीपमाला का मूल भगवान राम का अयोध्याप्रवेश कैसे कहा व माना जा सकता है ? ये सब घटनाएँ पूर्वापर विरोध का समाधान मांगती हैं।
दीपमाला की व्यापकता
सत्य-अहिंसा के अग्रदूत, जैनधर्म के चौवीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण* प्राप्त करना, उनका मोक्ष
*निर्वाण और मृत्यु ये दो शब्द हैं । इन दोनों के अर्थ में महान अन्तर है । निर्वाण शब्द का प्रयोग प्रायः वहां होता है जिस जीवनान्त के अनन्तर व्यक्ति का जन्म न हो । दूसरे शब्दों में-मृत्यु