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में पधारना ही दीपमाला के प्रारम्भ का मूल कारण है, यह तथ्य
आपके सामने ऊपर की पंक्तियों में रखा जा चुका है। अब उन ऐतिहासिक और धार्मिक महापुरुषों के जीवनों पर भी संक्षेप में दृष्टिपात कर लेना चाहिये, जिन्होंने दीपमाला के इस पवित्र दिन स्वर्गवास्वी बनकर या कोई विशेष कार्य करके दीपमाला की लोकप्रियता को और अधिक व्यापक बनाने में अपना पुण्य योग दिया है । अतः नीचे की पंक्तियों में दीपमाला के पुण्य दिन से सम्बन्धित कुछ ऐतिहासिक जीवनों पर प्रकाश डाला जाएगा ।
श्री हरगोविंदसिंह जी और दीपमाला
सिक्ख सम्प्रदाय में दीपमाला एक विजयोत्सव के रूप में मनाई जाती है । सिक्ख सम्प्रदाय के एक स्वनामधन्य गुरु श्री हरगोविन्दसिंह जी की विजय इस दीपमाला के पुण्य दिन से सम्बन्धित है । श्री हरगोविन्दसिंह जी ने गुरु अजुनसिंह के पश्चात् सिक्ख सम्प्रदाय की बागडोर संभाली थी । आरम्भ में तो उन के तथा उस समय के मुग़ल--सम्राट् जहांगीर के सम्बन्ध बड़े अच्छे थे किन्तु उनके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर जहांगीर ने उनको ग्वालियर के दुर्ग में बन्दी बनाने का प्रयत्न किया था । कहा जाता है कि गुरु हरगोविंद सिंह जी ने अपने ५२ शिष्यों के साथ न केवल अपने को बन्दि-गृह से मुक्त कराया
की मृत्यु या जन्म-मरण की सर्वथा समाप्ति का नाम निर्वाण है और जिस मरण के पश्चात् पुनः जन्म हो, उत्पत्ति हो, उसे मृत्यु कहते हैं । मृत्यु संसारी जीव की होती है और निर्वाण प्रायः किसी वीतराग महापुरुष का होता है।