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चल रही थी। गंगा का पानी बर्फ जैसा ठंडा था। गंगा की तेज़ धारा बड़ी-बड़ी चट्टानों से टकरा कर मदमाती सी बह रही थी। स्वामी राम के मन में उमंग उठी । वे बहते पानी में उतर गए । बस फिर क्या था, गंगा की तेज धाराओं ने उमड़-उमड़ कर उन्हें अपनी गोद में ले लिया। चारों ओर नीरवता थी। देवदार के ऊंचे वृक्ष ही चुपचाप इस अपूर्व भिलन का दृश्य देख सके थे । संक्षेप में अपनी बात कह दूं-स्वामी राम प्रकृति को मां कहा करते थे, ३३ वर्षों के बाद उसी प्रकृति मां की गोद में सदा के लिये सो गये ।
स्वामी राम अपने युग के एक महान योगी थे और विराट व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे । पुरातन आध्यात्मिकता के वह एक नवीन प्रतिनिधि बनकर सभ्य संसार के सामने प्रकट हुए थे । इनके विचार बड़े ऊंचे थे और आध्यात्मिकता से ओत--प्रोत रहा करते थे । आप अपने प्रवचना में फरमाया करते थे
जहां अहंकार है, वहीं भगवान नहीं रहता । मैं और मेरा का भेद हमारे मन को उन्नति करने से रोकता है। जबतक कोई बीज पृथ्वी में अपना अस्तित्व नहीं मिटा देता, तब तक वह पौधा बन कर फूल नहीं बन सकता।
भगवान का सब से अच्छा नाम प्रेम है, और गरीबों में सच्ची सह नुभूत ही सच्चा धर्म है । उसके बिना धर्म की रीतियां खोखली हैं । .........
इस तरह स्वानी राम बड़े आध्यात्मिक विचारों के व्यक्ति थे, निर्भयता, पवित्रता और विश्व-प्रेम आपके कण-कण में निवास करता था।