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आज भी भारत वर्ष में बड़े ही समारोह के साथ मनाई जाती है। आज भी दीपमाला के माध्यम से भगवान महावीर के रात्रि में यह प्रण किया था कि भविष्य में हम कार्तिकी अमावस्या की रात्रि को द्रव्य--प्रकाश किया करेंगे और दीप जला कर भगवान महावीर का पुण्य निर्वाण-दिवस मनाया करेंगे ।
इसके अतिरिक्त उन का यह भी कहना है कि यह सत्य है कि भगवान महावीर की निर्वाण-रात्रि को भगवान के भामण्डल के अस्त हो जाने पर सर्वत्र अन्धकार हो गया था, किन्तु भगवान के निर्वाणमहोत्सव में सम्मिलित होने के लिये उपस्थित हुए देव, देवी, इन्द्र और इन्द्राणी आदि के शरीरगत दिव्य प्रकाश से पौषधशाला का वह अन्धकार दूर हो गया था । देवों के दिव्य शरीरों की दिव्य ज्योति से पौषधशाला का कण-कण ज्यातित हो उठा था । देवों का वही दैविक द्रव्य-प्रकाश भगवान महावीर के भाव-उद्योत (आत्म-तेज) का पुण्य प्रतीक समझा जाने लगा था । इसी के आधार पर राजा लोगों ने भविष्य में द्रव्य-उद्योत करने का निश्चय किया था।
___*प्रश्न हो सकता है कि भगवान महावीर से पहले जो २३ तीर्थकर हुए हैं, उनका निर्वाण-दिवस दीपमाला के रूप में परिवर्तित क्यों नहीं हुआ ? भगवान महावीर के निर्वाण-दिवस को ही दीपमाला के रूप में मनाने का क्या विशेष कारण है ?
इस प्रश्न का उत्तर इतना ही है कि भगवान महावीर का निर्वाषा बस्ती में हुआ था और धर्म-देशना देते हुए, किन्तु जो शेष २३ तीर्थकर हुए हैं, उनका निर्वाण वनों में या पर्वतों में हुआ था। किसी नगर या बस्ती में उनका निर्वाण नहीं हो पाया, और नाहीं प्रवचन करते हुए । फलतः निर्वाण के समय उनके