________________
है ? आज इसी के सम्बन्ध में कुछ बातें आप के सन्मुख रखी जाएंगी।
भगवान महावीर और दपमाला
कल्पसूत्र की मान्यता है कि भगवान महावीर का अंतिम चातुर्मास भूपति हस्तिपाल की विशाल नगरी पावापुरी में हुआ था । चातुर्मास के १०५ दिन व्यतीत हो चुके थे। कार्तिकमास की अमावस्या की रात्रि थी। उस समय पोषध--शाला में नव मल्लकी जाति के काशी देश के राजा, तथा नव लेच्छकी जाति के कोशल देश के राजा, इस प्रकार १८ देशों के राजा-महाराजा भगवान महावीर की सेवा में पौषध* व्रत धारण करके
आध्यात्मिकता का लाभ ले रहे थे । भगवान सत्य-अहिंसा के पावन अमृत से उपस्थित राजा-लोगों के हृदय--पौधों को सींच रहे थे। आत्म-शुद्धि तथा प्रात्म-कल्याण का आदर्श उन्हें समझा रहे थे । एक ओर भगवान का अनन्त ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र जन्य भाव-उद्योत (भा-मण्डल) अपनी छटा दिखा रहा था, दूसरी और भगवान का ज्ञानालाक साधकों के आत्म-मन्दिर में ज्ञान के दीपक जला रहा था । उस समय का वातावरण कितना
___ *अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व--तिथियों में किया जाने वाला जैन गृहस्थ का एक व्रत-विशेष पोषध होता है। इसमें दिनरात के लिए भाजन का त्याग करना हाता हे, शारीरिक विभूपा तथा आभूषण आदि सभी साधनों को छोड़ना पड़ता है, ब्रह्मचर्य अपनाना होता है, आत्म-चिन्तन के अतिरिक्त कोई भी सांसारिक चिन्तन इस में नहीं किया जाता तथा इसमें प्रायः एक साधु जैसी अवस्था होती है।