Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 14
________________ वीर प्रभु की अमर कहानी ध्वनि-सुनो-सुनो अदुनिया वालो !......... सनो-सुनो अ दुनिया वालो ! वीर-प्रभु की अमर कहानी, देश धर्म पर अर्पण करदी थी जिस ने जिन्दगानी । चेत शुद तेरस को भगवन कुण्डलपुर में जन्म लिया, राजा सिद्धार्थ के घर में इक रत्न अमोलक पैदा हुआ । माता त्रिशला की कुक्षि से चौवीसवां अवतार हुआ, मगध देश में सारे मानों धर्म का सूर्य उदय हा । देव लोक से चौंसठ इन्द्र आए महोत्सव करने को, सरदुन्दुभि मन-मोहन वाली बाजे दिल खुश करने को। नरनारी मिल मंगल गाया, रोग शोक सब हरने को, जन्म महोत्सव किया प्रभु का, धर्म के खीसे भरने को । चारों तर्फ जिस वक्त देश में घटा पाप की छाई थी, दया रूपी चिड़िया की गरदन पाप ने आन दवाई थी। बज्ञ हवन में जीवों की जब जाती जान उसी वक्त अवतार लिया जब मच रही हाल दुहाई थी। अठाईस वर्ष तक घर में रह कर मात-पिता की सेवा की, माज्ञा-पालन हरदम करते सुख-दुख की पर्वाह न की । मात-पिता के मर जाने पर जग तारण की खुशी चढ़ी, वर्षीदान दान किया निज कर से आखिर प्रभु ने दीक्षा ली।

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