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ध्यान ः साधना और सिद्धि
मार्ग स्वतः ही अवरुद्ध हो जाते हैं।
मनुष्यत्व ईजाद होगा मनन करने से । मन से ही मनुष्यत्व का सम्बन्ध है । मन को मनन की दिशा देकर ही मनुष्यत्व को सार्थक किया जाता है । अभी मन में मनुष्यत्व कहाँ है ! अभी तो मन में पशुता है, पाशविकता है । अपने पाशविक मन को देवत्व की दीप्ति से आलोड़ित करना ही मनुष्यत्व है । बुद्ध का विवाह हुआ। संतान हुई। महावीर के भी संतति हुई । यह सब मनुष्य के उस मन का काम था, जिसमें वासना रहती है। महावीर के मातापिता की मृत्यु हुई, जलती हुई चिता देखी और चेतना जग उठी। बुद्ध ने दीन-हीन मनुष्य की स्थिति देखी, उनके हृदय का देवता जग उठा । मन का कायाकल्प हो गया । मन की दिशा और दशा दोनों बदल गई । यानि मनुष्यत्व का जन्म हो गया। मन मर गया, मनु पैदा हो गया । व्यक्ति गौण हो गया, व्यक्तित्व महान हो गया।
आज मनुष्य भटकता हुआ दिखाई देता है । चाहे इसे समय का प्रवाह कहें या संस्कारों का प्रभाव, हर ओर भटकाव ही नजर आता है । यह कोई रास्तों पर भटकना नहीं है । यह तो मनुष्य का स्वयं से भटकाव है और यही विचारणीय भी है । पता लापता हो जाए तो ठिकाना मिल जाएगा, लेकिन जब वह अपने मन के गलियारे में अटक जाए, वहीं भटक जाए तो उसे अपने बारे विचार करना चाहिए । हमें भगवान और आत्मा के बारे में उतना विचार नहीं करना है जितना स्वयं के मनुष्यत्व के बारे में । पहले हम यह तो जान लें कि मानवीय स्वरूप के चलते हमारे अंदर क्या विशिष्टताएँ होनी चाहिए और हमारे पास क्या खामियाँ हैं।
हम जब इंसान को भटकता हुआ देखते हैं तो पाते हैं कि वह भीड़ में अकेला और अकेले में भीड़ जुटाए हए है । वह निर्णय ही नहीं कर पाता कि वह चाहता क्या है । जब भीड़ में है और उसे कोई देख नहीं रहा, छू नहीं रहा, बात नहीं कर रहा, उसकी सुन नहीं रहा, तब अपने को अकेला समझने लगता है और एकांत होने पर जब अकेलापन चाहता है तो विचारों की भीड़ में डूबता उतराता रहता है। प्रवृत्ति से पलायन करना चाहता है, पलायन किये जाने पर प्रवृत्ति का ख्वाब पीछा नहीं छोड़ता। संसार में रहकर संन्यास के ख्वाब देखता है और संन्यासी होकर संसार के चने चबाना चाहता है । पिंजरे का पक्षी आकाश में उड़ने के स्वप्न देखता है और आकाश का पक्षी सोचता है कोई ऐसा उपाय करूँ कि पिंजरे में आराम से दाना-पानी प्राप्त करूँ । मनुष्य स्वयं ही यह समझने में असमर्थ है कि उसे किस बात का तनाव है, किससे घुटन है, किस तरह की रागात्मक और हिंसात्मक प्रवृत्तियाँ हैं । उसे क्यों अनिद्रा-रोग ने घेरा है । मनुष्य अपने
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