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उड़िये पंख पसार
मेरे प्रिय आत्मन्,
मनुष्य-जीवन का फूल बड़े सौभाग्य से खिलता है । किसी भी प्राणी के लिए निरन्तर प्रतीक्षा और पुण्य-संचय के बाद ही मनुष्यत्व का फूल खिला करता है । किसी मनुष्य का पशु या देवता होना सरल है, लेकिन मनुष्य का मनुष्य होना ही कठिन हो गया है। मनुष्य का अपने स्तर से गिर जाना ही पशुत्व है और ऊपर उठ जाना ही देवत्व का प्रतीक है । देव तो ऊपर उठ ही चुके हैं, लेकिन मनुष्य के सामने सभी विकल्प खुले हुए हैं। वह जो चाहे हो सकता है - पशु, मनुष्य या देव । मनुष्य के हाथ में मनुष्यत्व रहे, यही जीवन का वरदान है । अन्तर्मन से मनुष्यत्व का छिटक जाना जीवन का अभिशाप
यह प्रकृति का अनुग्रह है कि हम स्वस्थ इंसान हैं। आजीविका भी उचित संसाधनों से ही प्राप्त करते हैं । हम न तो किसी प्रकार के दुर्व्यसन से ग्रस्त हैं और न ही किन्हीं हिंसक प्रवृत्तियों में संलग्न हैं, लेकिन फिर भी ऐसा क्या है कि हम अपने मनुष्यत्व की कसौटी पर खरे नहीं उतरते । हम पाते हैं कि हमारे भीतर से मनुष्य हट गया है । वह कभी पशु हो जाता है, कभी देवत्व की ओर चला जाता है । बस, नहीं रह पाता तो मनुष्य नहीं रह पाता । धर्म से वह अपने होने की तो मुक्ति चाहता है, लेकिन मनुष्यत्व नहीं पा पाता । और जब तक मनुष्यत्व नहीं मिलता, तब तक आत्मविश्वास और उत्थान के सारे
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