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सार-संक्षेप
“युवक का प्रश्न था, 'ध्यान, आखिर क्या है?'
संत ने बगैर कुछ कहे कंधे पर लटका बोझिल थेला उतारा और वहीं जमीन पर उलटा कर दिया। युवक ने पूछा, और कुछ?' संत ने खाली थैला उठाया, कंधे पर लटकाया, बगैर कुछ कहे रवाना हो गए राजमार्ग की ओर।
युवक के पास प्रतिभा थी, प्रज्ञा थी। वह समझ गया ध्यान के मर्म को और उपलब्ध हो गया स्वयं के प्रकाश को।
ध्यान में उतरने से पहले, ध्यान के मर्म को समझो और फिर ध्यान में उतरो। एक बार और, इस संवाद पर मनन करो और मुक्त हो जाओ। तुम अभी इसी क्षण आध्यात्मिक शान्ति से आह्लादित हो उठोगे।"
— श्री चन्द्रप्रभ
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