Book Title: Dharmbindu
Author(s): Haribhadrasuri, Hirachand Jain
Publisher: Hindi Jain Sahitya Pracharak Mandal

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Page 16
________________ १२ 1 लिये और अवसर पाकर उन शास्त्रोमें आये हुए जैन शास्त्रके खंडनको भी वे छोटे पन्नों में नोध करने लगे। इन पन्नों को वे अपनी पास छुपाके रख रहे थे। जैन शासनका उत्कट अनुराग और बौद्ध दर्शन मार्मिक स्थलोकी उत्कट जिज्ञासा वृत्तिके तुमुल आतर युद्धके विजय में एक दिन - एक क्षणका प्रमाद सा हो गया हो या ज्ञानकी चोरीने उनको शिक्षापाठ देना हो-जो कुछ हो सूरिजी के निमित्तशास्त्रीय उपायका वह करुण घटनानाटकका पडदा आज खुल गया । - बात यह थी कि - एक दिन अचानक वे पन्ने पवन से ऊडते ऊडते किसी बौद्ध भिक्षु - आचार्य के हाथमें पडे । आचार्य उनको पढते ही चौक पढे । उनको निश्चय हो गया कि कोड जैन श्रमण यहाँ पढने आया है । और वौद्ध सिद्धान्तके खडनके मार्मिक स्थलोंको उसने इस तरह बटोर रक्खा है । इतने बडे विद्यार्थी समुदाय में से उनको पहेचान लेना कुछ सामान्य बात न थी । कुशल आचार्यने उनको ढूंढने के लिये एक तरकीब रची। प्रत्येक वर्गके आचार्यको इस तरकीकी इचला दे रक्खी। प्रत्येक विद्यार्थीको पुस्तकालय के ऊपले कमरे से पुस्तक लानेकी क्रमश अनुज्ञा हुई। उपर जाते हुए सीडी के प्रत्येक सोपान में महाचीरका चित्र इस तरह कुगलता से अकित किया गया कि सोपानका कोई कोना भी खाली न रक्खा। इस चित्रमूर्ति पर पैर रख कर ही ऊपले कमरे में कोई भी जा सकता था। हंस और परमहंसके लिये यह बडी कसौटी का प्रसंग था | भयके आतंकने उनको उस क्षण तो काय

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