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हां, तो अब उन्होने दीक्षा लेनेके वाद शास्त्रोका मार्मिक अभ्यास किया। वे वेदपारगत तो थे ही और जैन शास्त्रोंके नये दृष्टिकोणसे उनमें तुलनावृत्ति जागृत हो उठी। उनके हृदयमें जैनधर्मके प्रति अनुराग वढनेके साथ साथ जैन तत्त्वज्ञानकी अनेकातदृष्टिकी उत्कृष्टता बस गई। श्रमणत्वके संयमपूर्ण आचारोको पालते हुए वे आचार्य पदके योग्य भी हो चुके थे। ___उन्होंने जैन शासनकी सेवामे अपने आपको सोप दिया। उन्होंने सर्व दर्शनों के सिद्धान्तरहस्यको अपने हृदयमें पचा लिये थे
और उनके उस ज्ञानका निर्मल गंगोत्री प्रवाह जो उसमेसे बहने लगा उससे बहुत जिज्ञासु लोग अपनी तृपा छिपाने लगे।
अनेकान्तवादकी वह समन्वयपूत दृष्टि से उन्होंने जैन तत्त्वज्ञानका खजाना प्रत्यक्ष कर लिया था। उस समभाव इष्टिका परिचय देनेवाला अनेकान्तवादका झंडा लेकर वादियोंमे अब वे घुमने लगे
और उन वादियोंके ,अखाडेमे विजयी मल्लकी ख्याति पाने लगे। कहते हैं कि उन्होने बौद्धवादियोका पराभव किया और दिगंबर आचार्योको भी परास्त किया। उन्होने श्वेताम्बरों में शिथिल बने हुए चैत्यवावासियोको तीखे शब्दोसे कठोर प्रहार किया और संयमकी शुद्ध विवेक दृष्टिका दीप सकोरा। शिष्यरत्न हंस और परमहंसकी घटनाः
सूरिजीके शिष्य परिवारमें हंस और परमहंसका नाम उल्लेखनीय है। वे दोनो उनके भानजे थे। उन्होंने सूरिजीका उपदेश सुनकर
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