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सर्ग नौ
आदर्श पतिव्रता
इधर सभा में हो रहा भीषण अत्याचार; उधर नगर में मच रहा, भारी हाहाकार । अन्धकार - सा छा रहा, गली और बाजार, शोक-सिन्धु में पूर्णतः डूबे सब नर-नार । पड़ा अचानक शीश पर, यह क्या वज्र कराल; सेठ चढ़ाया जायगा, क्या शूली के भाल ? "दया करें हम पर प्रभो, दीन - बन्धु भगवान; सेठ हमारे को मिले, सादर जीवन-दान ।" क्या बूढ़े, बालक, युवा सभी हुए बेभान; गूंज उठे सब प्रार्थना- ध्वनि से धर्म - स्थान ।
सती शिरोमणि मनोरमा,
निज सुखद सदन में बैठी थी । आस-पास सुख-मधु बिखरा था,
हर्ष - सिन्धु में पैठी थी ॥ प्रेम-मग्न हो कर पति के,
___ चरणों में ध्यान लगाया था । पौषध व्रत के विमल पारणे,
का सामान जुटाया था ।
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