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आदर्श पतिव्रता
ही
रहते ।
दैववाद के अटल भरोसे,
मात्र आलसी रोते-रोते जन्म गँवाते,
नित्य नए
संकट
सहते ॥
कँपाते हैं ।
किन्तु, वीर निज पैरों पर,
हो खड़े जगत चाहे कैसा कठिन कार्य हो,
झट आसान
बनाते
हैं
।
आत्मा की है प्रबल शक्ति,
वह चाहे जो कर सकती है। भाग्य-चक्र में मन चाहा सब,
उलट - फेर कर सकती है ॥
रोने से क्या काम बनेगा ? ।
अतः यत्न करना चाहिए। आध्यात्मिक बल-हेतु प्रभू की,
चरण - शरण गहना चाहिए ॥
टालेंगे ।
दीन-बन्धु ही मुझ दुखिया का, .
सारा दुखड़ा प्राणनाथ को मृत्यु-राक्षसी से,
बस वही बचा
लेंगे ॥"
शुद्ध श्वेत परिधान पहन,
पद्मासन सुदृढ़ लगाया है । अर्धोन्मीलित नयन बन्द कर,
श्रीजिन ध्यान लगाया है ॥
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