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आदर्श पतिव्रता राजा ने बस द्वेष-भाव से,
झूठा जाल बिछाया है। शील-मूर्ति पति के प्राणों पर,
__ यह दुर्वज गिराया है ॥"
कैसा जुल्म असीम गुजारा,
हमने जालिम तेरा क्या बिगारा! सेठ धर्मी बड़े ही गणी हैं,
शील धर्म है प्राणों से प्यारा; माता, भगिनी उन्हें है परस्त्री,
आता रंच न हृदय बिकारा ! क्या तू सचमुच शूली देगा,
___ अति निर्दय निपट हत्यारा; फूल-शैय्या पै सोने वाला,
कैसे झेलेगा शूली की धारा ! हाय ! छाती में बिजली-सी कड़के,
पूरा चलता जिगर पै है आरा; पूर्ण स्वर्ग-सुखी-सा कुटुम्ब था,
छाया संकट का अँधियारा ! हाय घर का तो क्या, सारे पुर का,
एक मात्र वही है सहारा; दीन बालक हैं रो-रो बिलखते,
__ आज हो गए ये भी आवारा ! जालिम हमको सता के क्या खुश है,
___ होगा अन्त भला न तुम्हारा; राज्य वैभव यह सब क्षण-भर में,
उठ जाएगा डेरा यह सारा !
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