Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 180
________________ धर्म-वीर सुदर्शन बोधिज्ञान दे अभयात्मा को, दृढ़ सम्यकत्वी बना दिया ॥ देवों को जब पता चला तो, चहुँ दिशि जय-जयकार हुआ । धन्य-धन्य है वीतरागता, अभया का उद्धार हुआ । अन्धकार-संत्रस्त प्रजा को, ज्ञान-ज्योति - रवि दिखलाया । घूम-घूम कर देश-देश में, सदाचार - पथ बतलाया । धर्मान्दोलन करते-करते, मोक्ष - काल जब आया है । योग-निरोधन कर अजरामर, । “सिद्ध' 'मुक्त' पद पाया है ॥ एक ग्रन्थ अनुसार पाटलीपुत्र, नगर ही मन - भावन । सुप्रसिद्ध निर्वाण-भूमि है, सेठ सुदर्शन की पावन ॥ १५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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