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धर्म-वीर सुदर्शन
बोधिज्ञान दे अभयात्मा को,
दृढ़ सम्यकत्वी बना दिया ॥ देवों को जब पता चला तो,
चहुँ दिशि जय-जयकार हुआ । धन्य-धन्य है वीतरागता,
अभया का उद्धार हुआ । अन्धकार-संत्रस्त प्रजा को,
ज्ञान-ज्योति - रवि दिखलाया । घूम-घूम कर देश-देश में,
सदाचार - पथ बतलाया । धर्मान्दोलन करते-करते,
मोक्ष - काल जब आया है । योग-निरोधन कर अजरामर, ।
“सिद्ध' 'मुक्त' पद पाया है ॥ एक ग्रन्थ अनुसार पाटलीपुत्र,
नगर ही मन - भावन । सुप्रसिद्ध निर्वाण-भूमि है,
सेठ सुदर्शन की पावन ॥
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