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धर्म-वीर सुदर्शन वह धन दानी वीर पलक में,
रज-कण तुल्य लुटा देते ॥ (२३) वे कायर क्या देंगे जो
मरते हों कौड़ी-कौड़ी पर । खाते - देते देख अन्य को,
जो कंपते हों थर थर थर ॥ (२४) वीर पुरुष अपवाणी सुनकर
क्रोध नहीं मन में लाते । अविचल शांत प्रशांत सिंधु-से,
नहीं क्षुब्धता दिखलाते ॥ (२५) शत-शत विद्युत पड़े सिंधु में,
क्या प्रभाव दिखलाएँगी। अतल जलधि में सदा काल के
लिए शान्त सो जाएँगी॥ (२६) जीवन में सुख दुःखादिक का,
__चक्र निरंतर फिरता है । मानव-पद के गुण-गौरव का
___ सफल परीक्षण करता है ॥ (२७) वीर पुरुष की संकट में भी,
धर्म - भावना बढ़ती है। उलटी करने पर भी अग्नि
ज्वाला ऊपर चढ़ती है। (२८)
दुःख दुःख है, जब आता है,
सहन किया ही जाता है।
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