Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 187
________________ परिशिष्ट न्याय और अन्याय भुलाकर निन्द्य कदाग्रह पर लड़ते ॥ (१७) दुराग्रही जन सद्गुण से भी लखता है दुर्गुण केवल । दैन्य विनय को, दृढ़ता को मद, सज्जनता को कहता छल ॥ (१८) इस धरती पर वीर पुरुष ही, ___ नाम अमर कर जाते हैं । कायर नर तो जीवन भर बस रो-रोकर मर जाते हैं ॥ (१६) वीर पुरुष ही रण में तलवारों के जौहर दिखलाते । मातृ-भूमि की रक्षा के हित जीवन भेंट चढ़ा जाते ! (२०) वीर पुरुष ही उग्र घोर तप, करते हैं अविचल निश्छल । चूर - चूर कर देते, गुरुतर, चिर संचित - कर्मों के दल ॥ (२१) वीर पुरुष ही मुक्त हस्त से, करते अपना सब कुछ दान । दीन - दुःखी के लिए सर्वदा, प्रस्तुत हों तरु-कल्प समान ॥ (२२) जिस धन के हित मात-तात, पत्नी प्रियजन जन तज देते। D १६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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