Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 194
________________ धर्म-वीर सुदर्शन प्रजाकष्ट - कर नित्य नए जालिम फर्मान निकलते हैं । टैक्स भार से दीन - हीन, श्रमजीवी रो - रो घुलते हैं ॥ (६० आशा पर मानव जीवन का, पल - पल समय गुजरता है। जीवन का बेड़ा आशा की लहरों पर ही चलता है ॥ (६१ रातें। सुख के उजले सुन्दर वासर, संकट की काली कट जाते हैं दिन-दिन वर्षों, आशा की करते बातें॥ (६२ है। आशा बिना जिन्दगी की गति, इंच न एक सरकती जीवन की प्रत्येक क्रिया पर आशा नित्य झलकती है। (६३ कीड़े से ले इन्द्र वर्ग का, सभी चराचर जग - प्राणी । आशा की छलना में चक्कर काट रहे यह ऋषि - वाणी॥ (६४ बाहर जो होता है उसका, बीज हृदय में ही होता । प्रायः निज मन ही प्रतिबिम्बित, औरों के मन में होता ॥ (६५ - १७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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