Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 198
________________ मनुष्य क्या, दिखा रक्तपात धर्म-वीर सुदर्शन जो रोते-रोते, बसे जहान भौतिक बल अन्यत्र कहीं भी, नहीं शक्ति से झुकता आध्यात्मिक बल के ही सम्मुख, आकर आखिर थकता चल प्रचण्ड आत्म बल, न भीष्म राह गह - सज्जनता से अरि को वशकरना है, शोभा सज्जन तम करना पशुता है. मात्र भीरुता है मन दोष नाश के लिए कर्त्ता को ही तो यों समझो रोग नाश के लिए रुग्ण ही नष्ट एक दुष्ट यदि सज्जन जीवित जग तो अपने से लाखों Jain Education International गर्ज रहा है अब असत्य पर, अन्त सत्य बनकर, में रह को, बचो क्रोध, कादर्य, दुःसाहस की १७५ दोष - यदि मार दिया । किया || का पर्दा फाड़ पूर्ण - आलोक प्रभाकर अनय से । सके ॥ पाए । सत्पथ का पथिक बना जाए | है । है ॥ दुर्बलता की । For Private & Personal Use Only की ॥ चमकेगा । दमकेगा ॥ से । (८४) (८५) (८६) (८७) (55) ( ८६) www.jainelibrary.org

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