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परिशिष्ट
ढालें ।
बालक कच्चा घट है उसको,
जैसा जी चाहे सुन्दर, सुघड़ बना लें अथवा,
कुटिल - कुरूप बना
डालें॥
(७८)
(७६)
दीन प्रजा के नौनिहाल,
शिक्षा - दीक्षा कब पाते हैं। मूढ़ अशिक्षित रहने से फंस
- दुराचार में जाते हैं ॥ मानव-भव का सार यही है,
सदाचार को अपनाना । पूर्ण रूप से शुद्ध - श्रेष्ठ, .
आदर्श जगत में बन जाना॥ मनुष्य क्या, अदृष्ट की जो
ठोकरें न सह सके ? मनुष्य क्या, जो संकटों के बीच,
खुश न रह सके ?
(८०)
(८१)
मनुष्य क्या, तूफान से जो,
क्षुब्ध भीम - सिन्धु उठा के शीश वेग . से न,
लहर बन के बह
में ।
सके ?
(८२)
में ।
मनुष्य क्या, जो चम-चमाते,
खंजरों की छाँह हंसते - हंसते गर्ज के न
सत्य बात कह
सके ?
(८३) ।
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