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धर्म-वीर सुदर्शन वज्र हृदय मानव ही देते,
हैं संकट की शान गला ॥ निर्बलता, कायरता सारे,
दोषों की जननी होती । न्याय-सिद्ध निर्भयता से ही,
विजय संकटों पर होती ।।। जहाँ सत्य का तेज वहाँ पर
त्रास नहीं कुछ भी होता । दुर्बल पापात्मा ही भय का
दृश्य देखकर है रोता ॥
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(३७)
अटल सत्य का पक्ष चाहिए,
फिर दुनिया में क्या भय है ? मानव तो क्या अखिल विश्व में,
विजय अंत में निश्चय है॥
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(३६)
सत्य श्रवण की चीज नहीं है,
वह तो जीवन में उतरे । तभी वस्तुतः उपयोगी हो,
जीवन 'अथ' से 'इति' सुधरे ॥ मात्र सत्य ही अखिल विश्व में,
मानव-जीवन का बल है। बिना सत्य के सबल-प्रबल भी
तुच्छ सर्वथा निर्बल है॥ पशुबल आखिर पशुबल ही है,
कितनी ही वह : भीषण हो ।
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