Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

Previous | Next

Page 190
________________ (३५) धर्म-वीर सुदर्शन वज्र हृदय मानव ही देते, हैं संकट की शान गला ॥ निर्बलता, कायरता सारे, दोषों की जननी होती । न्याय-सिद्ध निर्भयता से ही, विजय संकटों पर होती ।।। जहाँ सत्य का तेज वहाँ पर त्रास नहीं कुछ भी होता । दुर्बल पापात्मा ही भय का दृश्य देखकर है रोता ॥ (३६) (३७) अटल सत्य का पक्ष चाहिए, फिर दुनिया में क्या भय है ? मानव तो क्या अखिल विश्व में, विजय अंत में निश्चय है॥ (३८) (३६) सत्य श्रवण की चीज नहीं है, वह तो जीवन में उतरे । तभी वस्तुतः उपयोगी हो, जीवन 'अथ' से 'इति' सुधरे ॥ मात्र सत्य ही अखिल विश्व में, मानव-जीवन का बल है। बिना सत्य के सबल-प्रबल भी तुच्छ सर्वथा निर्बल है॥ पशुबल आखिर पशुबल ही है, कितनी ही वह : भीषण हो । (४०) १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200