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पूर्णता "तपोमूर्ति ऋषिराज ! तुम्हारा,
धन्य - धन्य तप धन्य अमल । पूर्ण-पुण्य के योग इसी,
__भव में ही द्रुत हुआ सफल ।। स्वर्ग-लोक से स्वयं इन्द्र ने,
मुझको यहाँ पठाई है । तप-द्वारा जो सुख चाहा था,
दासी देने आई है ।
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आँख खोल कर ज़रा देखिए,
देवी कैसी होती हैं ? पूर्ण-तपोधन संत जनों को,
__सुखप्रद कैसी होती ध्यान-मग्न मुनि के मानस में,
___ आया अणु भी क्षोभ नहीं । प्रलयानिल से मेरु महीधर,
हिल सकता है भला कहीं ॥
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कालरात्रि-सम क्रुद्ध पिशाची,
का अभया ने रूप धरा । काँप उठे वन, गिरि, पृथ्वीतल,
प्रलयकाल - सा दृश्य करा ॥
नग्न खङ्ग युग कर में लेकर,
बड़े जोर से धमकाया । भीषण माया-जाल बिछाकर,
- पूर्ण मृत्यु - भय दिखलाया ॥
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