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पूर्णता अस्तु, हृदय से पाप कालिमा,
का सब चिन्ह मिटाऊँगा । पूर्णतया परिशोधन कर,
स्फटिकोज्वल स्वच्छ बनाऊँगा ॥" आध्यात्मिक संकल्पों का,
जब हुआ हृदय में शुभ विस्तार । जग - प्रपंच - मूलापहारिणी,
अटल प्रतिज्ञा की . स्वीकार ॥ "अब से केवल-ज्ञानोदय तक,
. नहीं नगर में जाऊँगा । भोजनादि सब अटवी में ही,
पथिकादिक से पाऊँगा ॥" शून्य भयावह वन में निर्भय,
सिंह - समान विचरते हैं । उग्र तपश्चरण के द्वारा,
कर्माकुर क्षय करते हैं । एक समय की . बात,
एक कानन में पहुँचे मुनिवर । ध्यान लगाया सघन कुंज में,
चंचल चित्त अचंचल कर ॥ अभया रानी बनी व्यंतरी,
- इसी विपिन में फिरती थी । क्रूर-भाव के कारण याँ भी, - पाप - पिंड ही भरती थी । अकस्मात एक दिन फिरती, ... मुनि - समीप में आ निकली।
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