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धर्म - वीर सुदर्शन
दर्श मात्र से वैर जगा, कर
पूर्व - स्मरण अति ही मचली ॥
"अरे वही है, यह तो पापी, सेठ सुदर्शन
मैंने सब कुछ कहा करा, पर एक नहीं
रानी थी मैं तो, मेरे को, इसी धूर्त ने भय - विह्वल कर आत्म - हनन का
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किया ।
अति ही भीषण कष्ट दिया ||
अभिमानी ।
इसने मानी ॥
आदिकाल का धर्म - धूर्त,
फिर आज साधु बन बैठा है । धर्म - मूढ़ लोगों को ठगने, मायार्णव
में पैठा है ॥
वन में मादक सरस सुगन्धित, ऋतु बसंत त्याग और वैराग्य उड़ाने,
का सब साज
माया - बल से अनुपमेय अति,
सुन्दर रूप गगनांगण से उतर विमोहक,
हाव
भाव
पूर्व जन्म की आज वासना, पूर्ण करूँगी देवी हूँ, अति दिव्य शक्ति है, क्यों न बनेगा मम
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नष्ट
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जी भर कर ।
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किंकर ॥"
लहराया
सजाया
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है ॥
बनाया है ।
दर्शाया है ॥
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