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धर्म-वीर सुदर्शन
वन्दनीय है वह जो मरने,
पर भी रखता मस्ती है । आँधी के चक्कर में टीबे,
बालू के उड़ जाते हैं । लेकिन, दुर्गम, उन्नत पर्वत,
कभी न हिलने पाते हैं ।
जनता की आँखों के आगे,
मौत नाचती फिरती थी । किन्तु सुदर्शन के मुख पर तो,
अविचल शान्ति उमड़ती थी । जल्लादों ने शूली की इस,
ओर योजना शुरू करी । और उधर कर. जोड़ सेठ ने,
देव - वन्दना शुरू करी ॥
अर्हम्, अहम्, अहम्, अहम् !
अहम्, अहम्, अहम्, अहम् ! पावन परम-पुनीत अनन्त अचल, होता कलिमल का न ज़रा भी दखल; ज्ञान-ज्योति-प्रकाशित त्रिलोकी सकल, मनसा वचसा अलक्ष्य स्वरूप विमल ।
___ अर्हम्, अहम्, अहम्, अहम् ! प्रेमी भक्तों का प्यारा तू भगवान है, ज्योतिः -पुंज असीम प्रकाशमान है; सारे विश्व का ज्ञाता अमित ज्ञान है, सब से बढ़ कर निराली तेरी शान है ।
अहम्, अहम्, अहम्, अहम् !
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