Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 166
________________ धर्म-वीर सुदर्शन प्रभो ! आपकी सेवा में रह, कर सब कुछ बन जाएगा । अधम सुदर्शन भी मुनि-पद के, उच्च शिखर चढ़ जाएगा ॥" - वन्दन कर सोल्लास सेठ जी, ___अपने घर पर आए हैं । स्नेहवती सेठानी को निज, भाव साफ बतलाए हैं ॥ - - बात अचानक सुन पहले तो, तन मन की सुध भूल गई । शोक-सिन्धु में बही, विरह के, दुख की मन में शूल गई ॥ = बार-बार जब श्रेष्ठी जी ने, प्रेम - भाव से समझाई । हर्षान्वित हो तब मुनिपदवी, लेने की आज्ञा पाई ॥ राजा और प्रजाजन ने भी, समझाने का यत्न किया । किन्तु अन्त में श्रेष्ठी का, सुविचार सभी ने मान लिया ॥ पुत्रों को निज पद देकर, सब गेह - कार्य सँभलाया है । न्याय नीति के साथ प्रजा के, हित का पथ समझाया है । १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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