Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 167
________________ पूर्णता के पथ पर नगर - निष्क्रमण समारोह के, साथ हुआ, धर्म-घोष गुरुवर से मुनिवरपद के सुन्दर छोड़ दिया सम्बन्ध आज से, वक्र - मूर्ति जग काम सँभाला विश्व - हितंकर, राजा और प्रजा - जन महती, संख्या में श्रेष्ठी - मुख से सदुपदेश, ओजस्वी मीठी वाणी से. वन सभी जनों के हृदय क्षेत्र में, बोधामृत Jain Education International तजा मोह भी काया का || में आए । व्रत - माया समुपस्थित थे । सुनने को अति उत्कंठित थे । पाए । नव मुनि ने उपदेश किया । दिया ॥ का । नद बहा प्रतिक्षण क्षीण जीवन में, अमर खुद को बना देना; भविष्यत की प्रजा को, अपने पद चिन्हों चला देना । दुखी दलितों की सेवा में, विनय के साथ जुट जाना; अखिल वैभव बिना झिझके, बिना ठिठके लुटा देना । अस्त्पथ भूल करके भी, कभी स्वीकार न करना; प्रलोभन में न फँसकर, सत्य पथ पर सिर कटा देना । For Private & Personal Use Only परस्पर प्रेम से रहना, जगत में प्रेम जीवन है, बचाना प्रेम को, चाहे अमित सर्वस गँवा देना । १४४ www.jainelibrary.org

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