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पूर्णता के पथ पर
नगर - निष्क्रमण समारोह के,
साथ हुआ, धर्म-घोष गुरुवर से मुनिवरपद के सुन्दर
छोड़ दिया सम्बन्ध आज से, वक्र - मूर्ति जग
काम सँभाला विश्व - हितंकर,
राजा और प्रजा - जन महती, संख्या
में
श्रेष्ठी - मुख से सदुपदेश,
ओजस्वी मीठी वाणी से.
वन
सभी जनों के हृदय क्षेत्र में, बोधामृत
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तजा मोह भी काया का ||
में आए ।
व्रत
-
माया
समुपस्थित थे ।
सुनने को अति उत्कंठित थे ।
पाए ।
नव मुनि ने उपदेश किया ।
दिया ॥
का ।
नद बहा
प्रतिक्षण क्षीण जीवन में, अमर खुद को बना देना;
भविष्यत की प्रजा को, अपने पद चिन्हों चला देना ।
दुखी दलितों की सेवा में, विनय के साथ जुट जाना;
अखिल वैभव बिना झिझके, बिना ठिठके लुटा देना । अस्त्पथ भूल करके भी, कभी स्वीकार न करना;
प्रलोभन में न फँसकर, सत्य पथ पर सिर कटा देना ।
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परस्पर प्रेम से रहना, जगत में प्रेम जीवन है, बचाना प्रेम को, चाहे अमित सर्वस गँवा देना ।
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