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धर्म-वीर सुदर्शन प्रभो ! आपकी सेवा में रह,
कर सब कुछ बन जाएगा । अधम सुदर्शन भी मुनि-पद के,
उच्च शिखर चढ़ जाएगा ॥"
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वन्दन कर सोल्लास सेठ जी,
___अपने घर पर आए हैं । स्नेहवती सेठानी को निज,
भाव साफ बतलाए हैं ॥
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बात अचानक सुन पहले तो,
तन मन की सुध भूल गई । शोक-सिन्धु में बही, विरह के,
दुख की मन में शूल गई ॥
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बार-बार जब श्रेष्ठी जी ने,
प्रेम - भाव से समझाई । हर्षान्वित हो तब मुनिपदवी,
लेने की आज्ञा पाई ॥
राजा और प्रजाजन ने भी,
समझाने का यत्न किया । किन्तु अन्त में श्रेष्ठी का,
सुविचार सभी ने मान लिया ॥
पुत्रों को निज पद देकर,
सब गेह - कार्य सँभलाया है । न्याय नीति के साथ प्रजा के,
हित का पथ समझाया है ।
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