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धर्म-वीर सुदर्शन प्राण-हारिणी तीक्ष्ण अणी का,
भाग भयंकर पल में नक़्शा बदला अभिनव,
दृश्य दृष्टि में
आया है ।
आया है ॥
स्वप्न-लोक की भाँति,
लौह-शूली का दृश्य विलुप्त हुआ । स्वर्ण-स्तम्भ पर रत्न-कान्तिमय
स्वर्णासन उद्भूत हुआ ॥ सेठ सुदर्शन बैठे उस पर,
शोभा अभिनव पाते हैं । श्रीमुख शशि पर अटल शान्ति है,
मन्द - मन्द मुसकाते हैं ।
मन्द सुगन्ध समीर चली,
नव पुष्प-राशि की वृष्टि हुई । पलक मारते मरघट में,
__ शुभ स्वर्गलोक-सी सृष्टि हुई ॥
विस्तृत नभ में सुर-यानों का,
जमघट खूब सुहाया है। देववृन्द के साथ इन्द्र ने,
___ चरणों शीश झुकाया है ॥ जहाँ-तहाँ बस सुर-ललनाएँ,
दुन्दुभि वाद्य बजाती हैं। जय जय के गंभीर घोष से,
गगनांगण. गुंजाती हैं ॥
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